मंदिरों से संबंधित रोचक तथ्य(65)

केदारनाथ जी का पट शीत ऋतु में बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाया जाता हैं। 6 माह बाद अप्रैल और मई माह के बीच जब केदारनाथ जी के कपाट खुलते हैं तब 6 माह मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता है, लेकिन आश्चर्य है की 6 माह तक मंदिर में जलाया गया दीपक जलता रहता है और यहाँ निरंतर पूजा भी होती रहती है। कपाट खुलने के बाद यहाँ वैसी ही साफ-सफाई भी मिलती है जैसे कपाट बंद करते समय होती है।

केदारनाथ में भगवान शंकर बैल के पीठ की पिंड रूपी आकृति में पूजे जाते हैं, जब भगवान शंकर बैल के रूप में अन्तर्धान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग कल्पेश्वर में जटाओं के रूप में प्रतिष्ठित हैं। शिव जी की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और बाबा केदार में बैल के धड़ के रूप में विराजते हैं, इसलिए इन चार स्थानों सहित केदारनाथ जी को पंचकेदार भी कहा जाता है। दीपावली महापर्व के दूसरे दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं।

श्री केदारनाथ जी के सम्बन्ध में स्कंद पुराण में वर्णन है कि भगवान शंकर, माता पार्वती से कहते हैं - हे प्राणेश्वरी यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं हूं। मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया, तभी से यह स्थान मेरा चिर-परिचित आवास है। यह केदारखंड मेरा चिरनिवास होने के कारण भूस्वर्ग के समान है। शिव पुराण के अनुसार जो भी मनुष्य केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन-पूजन कर यहां का जल पीता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता है।

केदारनाथ में शिव जी रुद्ररूप में निवास करते हैं, इसीलिये इस संपूर्ण क्षेत्र को रुद्रप्रयाग कहते हैं। श्री केदारनाथ का मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के रुद्रप्रयाग नगर में है, मान्यता है कि यहीं भगवान शिव ने रौद्र रूप में अवतार लिया था। धार्मिक ग्रंथों अनुसार बारह ज्योतिर्लिंगों में केदार ज्योतिर्लिंग सबसे ऊंचे स्थान पर स्थित है। शिव पुराण के अनुसार मनुष्य यदि बद्रीवन की यात्रा करके नर तथा नारायण और केदारेश्वर शिव के स्वरूप का दर्शन करता है तो, उसे नि:सन्देह मोक्ष प्राप्त होता है।

बद्रीनाथ जी को सृष्टि का आठवां वैकुंठ कहा गया है, जहां भगवान विष्णु 6 माह निद्रा में रहते हैं और 6 माह जागते हैं। यहां भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति शालग्राम शिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। यहां नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है और अखण्ड दीप जलता है, जो कि अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है। मान्यता है कि जब भी केदारनाथ और बद्रीनाथ जी के कपाट खुलते हैं उस समय मंदिर में जलने वाले दीपक के दर्शन का विशेष महत्व होता है। 6 महीने तक बंद दरवाजे के अंदर भी यह दीप जलता रहता है, मान्यता है कि दैवीय शक्तियां इस दीपक को जलाए रखती हैं।

बद्रीनाथ के पुजारी शंकराचार्य जी के वंशज होते हैं, जो रावल कहलाते हैं। यह जब तक रावल के पद पर रहते हैं इन्हें पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। यहाँ जोशीमठ में स्थित नृसिंह मंदिर में भगवान नृसिंह की एक बांह काफी पतली है, मान्यता है कि जिस दिन यह टूट कर गिर जाएगी उस दिन नर नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे और बद्रीनाथ जी के दर्शन वर्तमान स्थान पर नहीं हो पाएंगे। बद्रीनाथ जी के बारे में यह मान्यता है कि यह स्थान पहले भगवान शिव का निवास स्थान था। लेकिन भगवान विष्णु ने इस स्थान को शिव जी से मांग लिया था।

बद्रीनाथ धाम के सन्दर्भ में एक कहावत है जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी, अर्थात जो व्यक्ति बद्रीनाथ जी के दर्शन कर लेता है, उसे पुनः माता के उदर यानी गर्भ में फिर से नहीं आना पड़ता है। इसी कारण मनुष्य को जीवन में कम से कम एक बार बद्रीनाथ जी के दर्शन जरूर करने चाहिए। बद्रीनाथ धाम को शास्त्रों और पुराणों में दूसरा बैकुण्ठ भी कहा गया है। एक बैकुण्ठ क्षीर सागर है जहां भगवान विष्णु निवास करते हैं और श्री विष्णु का दूसरा निवास बद्रीनाथ में है, जहां श्री हरी निवास करते हैं।

श्री केदारनाथ जी को भगवान शिव के विश्राम करने का स्थान कहा गया है। केदारनाथ धाम तीनों ओर से पहाड़ों से घिरा है, एक तरफ लगभग 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड पर्वत है। यह स्थान न केवल तीन पर्वतों बल्कि पांच पवित्र नदियों का संगम भी है यहां- मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी नदियाँ हैं। इन नदियों में से कुछ का अब अस्तित्व नहीं रहा लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी नदी यहाँ आज भी हैं।

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए गठित श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट नें अपना लोगो चित्र जारी किया है, इस चित्र में भगवान श्री राम का चित्र अभय प्रदान करने की मुद्रा में है। चित्र में श्री हनुमान जी के श्रद्धावर्धन हनुमान स्वरुप को चित्रित किया गया है, जिसका अर्थ है कि नख से शिख तक हनुमान जी श्री राम जी सेवा में समर्पित हैं। आज भी श्रद्धालु पहले हनुमानगढ़ी में दर्शन के बाद ही रामलला का दर्शन करने जाते हैं, रामनगरी अयोध्या की रक्षा बजरंगबली ही करते हैं। भगवान राम सूर्यवंशी हैं इसी कारण चित्र में सुर्यवंश के प्रतीक लाल और पीले रंगों से सूर्यदेव को दर्शाया गया है। चित्र में रामो विग्रहवान धर्मः अंकित है जिसका अर्थ है श्री राम जी धर्म के मूर्तिमान स्वरूप हैं, वे साधु हैं और सत्य पराक्रमी हैं।

नासिक के पंचवटी में रामकुंड नामक एक कुंड है, मान्यताओं के अनुसार वनवास के समय प्रभु श्री राम इस कुंड स्नान किया करते थे। इस स्थान को देखने और कुंड में स्नान करने के लिए देश भर से श्रद्धालु आते हैं। इस कुंड में अस्थि राख का विसर्जन भी किया जाता है, महात्मा गांधी जी की अस्थियां भी इसी कुंड में विसर्जित की गई थीं। यहां लगने वाले कुंभ के मेले में हजारों श्रद्धालु स्नान करने आते हैं। यहाँ पास में ही स्थित गंगा घाट भी है, जहां लोग स्नान के लिए आते हैं।