नदियों से संबंधित रोचक तथ्य(8)

दुनिया में कई नदियाँ हैं, लेकिन माँ गंगा जैसी निर्मल प्रेम देने वाली कोई और नहीं। संत रैदास, रामानुज, वल्लभाचार्य, रामानंद और चैतन्य महाप्रभु सभी ने उन्हें माँ का स्थान दिया है। पद्मपुराण बताता है कि जैसे माँ बच्चे की सारी गंदगी साफ़ करती है, वैसे ही गंगा भी इंसान का पाप धोकर उसे शुद्ध कर देती हैं—चाहे वह कितना भी अधर्मी क्यों न हो। अपने अवतरण से पहले गंगा ने भगीरथ से पूछा था, “सब मुझमें पाप धोएँगे, तो मैं कहाँ जाऊँगी?” यह प्रश्न हमें चेताता है कि गंगा को स्वच्छ और पवित्र रखना हमारा कर्तव्य है, क्योंकि वह साक्षात् माँ की तरह हैं।

हिन्दू धर्म में मृत व्यक्ति की अस्त्थियों को गंगाजल में प्रवाहित किया जाता है, मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। नवीन शोधों के अनुसार गंगाजल में पारा विद्यमान है और मनुष्य की अस्थियाँ कैल्शियम और गंधक के अवयवो से मिलकर बनी होती है। पारा गंधक के साथ मिलकर पारद का निर्माण करता है और कैल्शियम पानी की सफाई का काम करता है, पारद को भगवान शिव का और गंधक को शक्ति का प्रतीक माना गया है। इसी कारण कहा गया है कि गंगा में विसर्जित होने वाली अस्थियाँ शिव और शक्ति में विलीन हो जाती है। पौराणिक आस्था है कि जिस व्यक्ति की मृत्यु गंगा नदी के निकट होती है वह व्यक्ति पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति पाता है। हिन्दू सनातन धर्म में माँ गंगा को मोक्षदायिनी, पतितपावनी, देव-नदी आदि कई नामो से जाना जाता है।

शास्त्रों में कहा गया है—“गंगा गंगेति यो ब्रूयात, योजनाम् शतैरपि। मुच्यते सर्वपापेभ्यो, विष्णुलोके स: गच्छति॥” अर्थात जो व्यक्ति सैकड़ों योजन की दूरी से भी माँ गंगा का स्मरण करता है, उसके समस्त पाप मिट जाते हैं और उसे विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि गंगा का प्राकट्य स्वयं भगवान विष्णु के चरणों से हुआ। वेदों और पुराणों में इनकी महिमा बार-बार दोहराई गई है—ऋग्वेद में इन्हें जाह्नवी नाम से संबोधित किया गया है। भारत ही नहीं, पश्चिम के साहित्यकार वर्जिल और दांते ने भी अपनी कृतियों में गंगा के दिव्य गुणों का वर्णन करके उनकी महानता स्वीकार की है।

गुजरात के कच्छ ज़िले के लखपत तहसील में स्थित नारायण सरोवर का संबंध भगवान विष्णु से माना जाता है। यहाँ सिंधु नदी का सागर से संगम होता है, और उसी तट पर यह पावन सरोवर बसा है, जिसका उल्लेख श्रीमद्भागवत में भी मिलता है। प्राचीन काल में अनेक ऋषि यहाँ आए, और आद्य शंकराचार्य ने भी इसके दर्शन किए थे। नारायण सरोवर से लगभग चार किलोमीटर दूर कोटेश्वर शिव मंदिर है, जबकि सरोवर के किनारे भगवान आदिनारायण का प्राचीन भव्य मंदिर स्थित है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपनी पुस्तक ‘सीयूकी’ में इस स्थल का वर्णन किया है, जो इसकी ऐतिहासिक महत्ता दर्शाता है।

‘मानसरोवर’ शब्द संस्कृत के ‘मानस’ और ‘सरोवर’ से बना है, जिसका अर्थ ‘मन का सरोवर’ है। यहाँ देवी सती का दाहिना हाथ गिरा था, इसलिए एक पाषाण शिला को उनका रूप मानकर पूजा होती है, और इसे ‘मानसा दाक्षायणी शक्तिपीठ’ कहा गया है। पुराणों में आता है कि यह सरोवर सबसे पहले भगवान ब्रह्मा के मन में उत्पन्न हुआ था और पहले भगवान विष्णु का निवास भी रहा। इसके उत्तर में कैलाश पर्वत, पश्चिम में राक्षसताल तथा दक्षिण में गुरला पर्वतमाला है। समुद्र तल से लगभग 4,556 मीटर ऊँचाई पर स्थित यह पावन जलाशय क़रीब 320 वर्ग किलोमीटर तक फैला है।

ओडिशा की महानदी में हाल ही में 500 वर्ष पुराने श्री राधाकृष्ण के गोपीनाथ मंदिर के अवशेष दिखे, जिससे पूरा राज्य हैरान रह गया। कुछ साल पहले भी पानी घटने पर इसका अग्रभाग नज़र आया था, और इस बार फिर से एक हिस्सा दिखाई दे रहा है। दरअसल, 1933 में बाढ़ के चलते महानदी ने प्रवाह बदला, जिससे पद्मावती गाँव नदी में डूब गया। माना जाता है कि वहाँ क़रीब 22 मंदिर थे, जो जलस्तर बढ़ने पर विलीन हो गए। गोपीनाथ मंदिर का अग्रभाग इसलिए उभरता है क्योंकि वह उस समय का बड़ा व ऊँचा मंदिर था।