पूजा से संबंधित रोचक तथ्य(33)

कहा जाता है कि एक बार 89 हज़ार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने का रहस्य पूछना चाहा। तब ब्रह्माजी ने समझाया कि जितना प्रसन्न शिव सौ कमल चढ़ाने से होते हैं, उतना ही एक नीलकमल से भी हो जाते हैं। हज़ार नीलकमल चढ़ाने का पुण्य एक बेलपत्र के समान तथा हज़ार बेलपत्रों का फल एक शमीपत्र चढ़ाने से मिल जाता है।

कहा जाता है कि एक बार 89 हज़ार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने का रहस्य पूछना चाहा। तब ब्रह्माजी ने समझाया कि जितना प्रसन्न शिव सौ कमल चढ़ाने से होते हैं, उतना ही एक नीलकमल से भी हो जाते हैं। हज़ार नीलकमल चढ़ाने का पुण्य एक बेलपत्र के समान तथा हज़ार बेलपत्रों का फल एक शमीपत्र चढ़ाने से मिल जाता है।

रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक करने से कुंडली के पाप नष्ट होकर साधक में शिवत्व प्रकट होता है। सावन में रुद्रपूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वतः संपन्न मानी जाती है। रुद्रहृदयोपनिषद कहता है—“सर्वदेवात्मको रुद्रः,” अर्थात सभी देवों की आत्मा रुद्र ही हैं।

रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक करने से कुंडली के पाप नष्ट होकर साधक में शिवत्व प्रकट होता है। सावन में रुद्रपूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वतः संपन्न मानी जाती है। रुद्रहृदयोपनिषद कहता है—“सर्वदेवात्मको रुद्रः,” अर्थात सभी देवों की आत्मा रुद्र ही हैं।

श्रावण मास में शिव की भक्ति के साथ-साथ श्रीकृष्ण की आराधना का भी विशेष महत्त्व बताया गया है। मान्यता है कि श्रावण कृष्ण पक्ष की अष्टमी से लेकर भादो कृष्ण पक्ष की अष्टमी (श्रीकृष्ण जन्माष्टमी) तक जो भक्त निरंतर कृष्ण का स्मरण या पूजा करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा जाता है कि इस महीने में श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न रहते हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं।

श्रावण मास में शिव की भक्ति के साथ-साथ श्रीकृष्ण की आराधना का भी विशेष महत्त्व बताया गया है। मान्यता है कि श्रावण कृष्ण पक्ष की अष्टमी से लेकर भादो कृष्ण पक्ष की अष्टमी (श्रीकृष्ण जन्माष्टमी) तक जो भक्त निरंतर कृष्ण का स्मरण या पूजा करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा जाता है कि इस महीने में श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न रहते हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं।

शास्त्रों के अनुसार, सावन माह में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं, जिसे ‘चौमासा’ कहा जाता है, और इस दौरान पूरी सृष्टि की ज़िम्मेदारी शिवजी संभालते हैं। इसी कारण सावन में शिव का पूजन अत्यंत फलदायी माना गया है। भक्त इस महीने जल, बेलपत्र और अन्य सामग्रियों से महादेव की अर्चना करते हैं, जिससे उन्हें सुख-सौभाग्य प्राप्त होता है।

शास्त्रों के अनुसार, सावन माह में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं, जिसे ‘चौमासा’ कहा जाता है, और इस दौरान पूरी सृष्टि की ज़िम्मेदारी शिवजी संभालते हैं। इसी कारण सावन में शिव का पूजन अत्यंत फलदायी माना गया है। भक्त इस महीने जल, बेलपत्र और अन्य सामग्रियों से महादेव की अर्चना करते हैं, जिससे उन्हें सुख-सौभाग्य प्राप्त होता है।

हिन्दू धर्म में गृह निर्माण से पहले मकान की नींव में चांदी के सर्प को प्रतिष्ठित किया जाता है, यह कर्मकांड इसलिये किया जाता है क्योंकि हिन्दू धर्म में ऐसा माना गया है कि क्षीरसागर में रहने वाले शेषनाग नें अपने फन पर पृथ्वी को धारण कर रखा है। इस पूजन में कलश में दूध, दही, घी डालकर मंत्रों से आह्वान पर शेषनाग को बुलाया जाता है और उनसे विनती की जाती है कि जिस प्रकार उन्होंने पूरी धरती का भार अपने फन पर धारण किया हुआ है उसी प्रकार इस घर की नींव भी चांदी के नाग के फण पर पूरी मजबूती के साथ स्थापित रहे।

हिन्दू धर्म में गृह निर्माण से पहले मकान की नींव में चांदी के सर्प को प्रतिष्ठित किया जाता है, यह कर्मकांड इसलिये किया जाता है क्योंकि हिन्दू धर्म में ऐसा माना गया है कि क्षीरसागर में रहने वाले शेषनाग नें अपने फन पर पृथ्वी को धारण कर रखा है। इस पूजन में कलश में दूध, दही, घी डालकर मंत्रों से आह्वान पर शेषनाग को बुलाया जाता है और उनसे विनती की जाती है कि जिस प्रकार उन्होंने पूरी धरती का भार अपने फन पर धारण किया हुआ है उसी प्रकार इस घर की नींव भी चांदी के नाग के फण पर पूरी मजबूती के साथ स्थापित रहे।

हिंदू धर्म में सूर्यदेव, गणेशजी, माँ दुर्गा, शिव-शंकर और विष्णुजी को पंचदेव कहा गया है। किसी भी पूजा या धार्मिक अनुष्ठान में इन पंचदेवों का स्मरण अत्यंत आवश्यक है। प्रतिदिन इनका ध्यान करने से समस्त कार्य मंगलमय तरीके से पूरे होते हैं।

हिंदू धर्म में सूर्यदेव, गणेशजी, माँ दुर्गा, शिव-शंकर और विष्णुजी को पंचदेव कहा गया है। किसी भी पूजा या धार्मिक अनुष्ठान में इन पंचदेवों का स्मरण अत्यंत आवश्यक है। प्रतिदिन इनका ध्यान करने से समस्त कार्य मंगलमय तरीके से पूरे होते हैं।

शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति अपने घर के पास एक पीपल, एक नीम, दस इमली, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आंवला और पाँच आम के पेड़ लगाता है, वह पुण्यात्मा कहलाता है। ऐसा इंसान कभी नरक के दर्शन नहीं करता। मान्यता है कि इन पेड़ों का न केवल पर्यावरण-संतुलन में योगदान है, बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी ये बेहद शुभ माने गए हैं।

शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति अपने घर के पास एक पीपल, एक नीम, दस इमली, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आंवला और पाँच आम के पेड़ लगाता है, वह पुण्यात्मा कहलाता है। ऐसा इंसान कभी नरक के दर्शन नहीं करता। मान्यता है कि इन पेड़ों का न केवल पर्यावरण-संतुलन में योगदान है, बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी ये बेहद शुभ माने गए हैं।

श्रद्धा, विश्वास और तन्मयता के साथ धार्मिक कार्यों को पूर्ण करना ही संकल्प कहलाता है। दान व यज्ञ जैसे सद्कर्म का वास्तविक पुण्य तभी प्राप्त होता है, जब उन्हें संकल्पपूर्वक किया जाए। कामना का मूल भी संकल्प में छिपा है, इसलिए यज्ञ संकल्प से ही सिद्ध होते हैं।

श्रद्धा, विश्वास और तन्मयता के साथ धार्मिक कार्यों को पूर्ण करना ही संकल्प कहलाता है। दान व यज्ञ जैसे सद्कर्म का वास्तविक पुण्य तभी प्राप्त होता है, जब उन्हें संकल्पपूर्वक किया जाए। कामना का मूल भी संकल्प में छिपा है, इसलिए यज्ञ संकल्प से ही सिद्ध होते हैं।

जिस स्थान पर विष्णुजी की आराधना, संकीर्तन और पूजा होती है, वहाँ माँ लक्ष्मी सदा विराजती हैं। जहाँ शालग्राम, तुलसी और शंख मौजूद हों, उस स्थान पर भी लक्ष्मीजी अपनी कृपा कभी नहीं हटातीं।

जिस स्थान पर विष्णुजी की आराधना, संकीर्तन और पूजा होती है, वहाँ माँ लक्ष्मी सदा विराजती हैं। जहाँ शालग्राम, तुलसी और शंख मौजूद हों, उस स्थान पर भी लक्ष्मीजी अपनी कृपा कभी नहीं हटातीं।

जहाँ शंख ध्वनि, शिव पूजा, ब्राह्मण भोजन और तुलसी का अभाव होता है, वहाँ लक्ष्मीजी का वास नहीं माना जाता। जो व्यक्ति बेवजह नाखून खुरेदता है या ब्राह्मणों को निराश करता है, उस स्थान को भी लक्ष्मीजी छोड़ देती हैं।

जहाँ शंख ध्वनि, शिव पूजा, ब्राह्मण भोजन और तुलसी का अभाव होता है, वहाँ लक्ष्मीजी का वास नहीं माना जाता। जो व्यक्ति बेवजह नाखून खुरेदता है या ब्राह्मणों को निराश करता है, उस स्थान को भी लक्ष्मीजी छोड़ देती हैं।

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