हिन्दू धर्मग्रंथों से संबंधित रोचक तथ्य(20)

पुराणों में उल्लेख है कि सबसे पहले कांवड़ चढ़ाने वाले रावण थे। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी सदाशिव को कांवड़ चढ़ाई थी। ‘आनंद रामायण’ में इसका जिक्र मिलता है कि भगवान श्रीराम खुद कांवड़िया बने, सुल्तानगंज से जल लिया, और फिर देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया। यह प्रसंग बताता है कि हमारी पौराणिक परंपराएँ कितनी पुरानी और गहरी हैं, और किस तरह भगवान भी अपने भक्तों को आदर्श दिखाने के लिए उन्हीं की रीति-रिवाज़ों का पालन करते थे।

पुराणों में उल्लेख है कि सबसे पहले कांवड़ चढ़ाने वाले रावण थे। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी सदाशिव को कांवड़ चढ़ाई थी। ‘आनंद रामायण’ में इसका जिक्र मिलता है कि भगवान श्रीराम खुद कांवड़िया बने, सुल्तानगंज से जल लिया, और फिर देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया। यह प्रसंग बताता है कि हमारी पौराणिक परंपराएँ कितनी पुरानी और गहरी हैं, और किस तरह भगवान भी अपने भक्तों को आदर्श दिखाने के लिए उन्हीं की रीति-रिवाज़ों का पालन करते थे।

यक्ष-यक्षिणी, एक प्रकार के प्रेत हैं जो भूमि में गड़े हुऐ गुप्त निधि के रक्षक होते हैं, इन्हें निधि-पति भी कहा जाता हैं। इनके सर्वोच्च स्थान पर निधि-पति कुबेर विराजित हैं जो देवताओं के निधि रक्षक हैं, जैन और बौद्ध धर्म में भी निधिपति कुबेर का वर्णन हैं।

यक्ष-यक्षिणी, एक प्रकार के प्रेत हैं जो भूमि में गड़े हुऐ गुप्त निधि के रक्षक होते हैं, इन्हें निधि-पति भी कहा जाता हैं। इनके सर्वोच्च स्थान पर निधि-पति कुबेर विराजित हैं जो देवताओं के निधि रक्षक हैं, जैन और बौद्ध धर्म में भी निधिपति कुबेर का वर्णन हैं।

‘कामिका तंत्र’ के मुताबिक ‘तंत्र’ शब्द दो हिस्सों से बना है—‘तन’ और ‘त्र’। ‘तन’ का अर्थ है गहन ज्ञान की प्रचुरता, जबकि ‘त्र’ का अर्थ सत्य से जुड़ा हुआ है। इस तरह, तंत्र वही विद्या है जिसमें प्रचुर मात्रा में सत्य का ज्ञान छिपा हुआ है। यही आगम और तंत्र शास्त्र, भगवान शिव और देवी पार्वती के बीच हुए संवाद से जन्मे और बाद में इनके गणों ने उन्हें लिपिबद्ध किया। तंत्र शास्त्र के इसी विशाल संसार में, ब्रह्माजी से संबंधित तंत्रों को ‘वैखानख’ के नाम से जाना जाता है। इन सभी प्राचीन ग्रंथों का मूल उद्देश्य मनुष्य को गहरे आध्यात्मिक रहस्यों और सत्य से जोड़ना है।

‘कामिका तंत्र’ के मुताबिक ‘तंत्र’ शब्द दो हिस्सों से बना है—‘तन’ और ‘त्र’। ‘तन’ का अर्थ है गहन ज्ञान की प्रचुरता, जबकि ‘त्र’ का अर्थ सत्य से जुड़ा हुआ है। इस तरह, तंत्र वही विद्या है जिसमें प्रचुर मात्रा में सत्य का ज्ञान छिपा हुआ है। यही आगम और तंत्र शास्त्र, भगवान शिव और देवी पार्वती के बीच हुए संवाद से जन्मे और बाद में इनके गणों ने उन्हें लिपिबद्ध किया। तंत्र शास्त्र के इसी विशाल संसार में, ब्रह्माजी से संबंधित तंत्रों को ‘वैखानख’ के नाम से जाना जाता है। इन सभी प्राचीन ग्रंथों का मूल उद्देश्य मनुष्य को गहरे आध्यात्मिक रहस्यों और सत्य से जोड़ना है।

ब्रह्मशीर्ष अस्त्र को ब्रम्हास्त्र से भी ज्यादा शक्तिशाली माना गया है, यह अस्त्र ब्रम्हास्त्र से चार गुना शक्तिशाली था। महाभारत काल में परशुराम जी, भीष्म, द्रोंण, कर्ण, अश्वत्थामा और अर्जुन को इस शस्त्र का आह्वान कर इसे प्रकट करने की शक्ति का ज्ञान था। महाभारत युद्ध में अश्वत्थामा और अर्जुन ने इस ब्रह्मशीर्ष अस्त्र का प्रयोग भी किया था।

ब्रह्मशीर्ष अस्त्र को ब्रम्हास्त्र से भी ज्यादा शक्तिशाली माना गया है, यह अस्त्र ब्रम्हास्त्र से चार गुना शक्तिशाली था। महाभारत काल में परशुराम जी, भीष्म, द्रोंण, कर्ण, अश्वत्थामा और अर्जुन को इस शस्त्र का आह्वान कर इसे प्रकट करने की शक्ति का ज्ञान था। महाभारत युद्ध में अश्वत्थामा और अर्जुन ने इस ब्रह्मशीर्ष अस्त्र का प्रयोग भी किया था।

तंत्रों के अनुसार मानव शरीर ३ करोड़ नाड़ियों से बना हैं तथा इनमें प्रमुख इड़ा, पिंगला तथा सुषुम्ना हैं, यह मानव देह के अंदर रीड की हड्डी में विद्यमान हैं। तंत्र-विद्या द्वारा कुंडलिनी शक्ति को जागृत कर, इन्हीं तीन नाड़ियों द्वारा ब्रह्म-रंध तक लाया जाता हैं, यह प्रक्रिया पूर्ण योग-मग्न कहलाती हैं, इससे ऐसी शक्तियों को स्थापित किया जाता है जिससे व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार हर कार्य कर सकता हैं।

तंत्रों के अनुसार मानव शरीर ३ करोड़ नाड़ियों से बना हैं तथा इनमें प्रमुख इड़ा, पिंगला तथा सुषुम्ना हैं, यह मानव देह के अंदर रीड की हड्डी में विद्यमान हैं। तंत्र-विद्या द्वारा कुंडलिनी शक्ति को जागृत कर, इन्हीं तीन नाड़ियों द्वारा ब्रह्म-रंध तक लाया जाता हैं, यह प्रक्रिया पूर्ण योग-मग्न कहलाती हैं, इससे ऐसी शक्तियों को स्थापित किया जाता है जिससे व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार हर कार्य कर सकता हैं।

ऋग्वेद की एक ऋचा में स्वास्तिक को सूर्यदेव का प्रतीक भी माना गया है, जबकि अमरकोश में इसे आशीर्वाद, पुण्य, क्षेम और मंगल का प्रतीक माना गया है। इसकी मुख्यत: चारों भुजाएं चार दिशाओं, चार युगों, चार वेदों, चार वर्णों, चार आश्रमों, चार पुरुषार्थों, ब्रह्माजी के चार मुखों और हाथों समेत चार नक्षत्रों आदि की प्रतीक मानी जाती है।

ऋग्वेद की एक ऋचा में स्वास्तिक को सूर्यदेव का प्रतीक भी माना गया है, जबकि अमरकोश में इसे आशीर्वाद, पुण्य, क्षेम और मंगल का प्रतीक माना गया है। इसकी मुख्यत: चारों भुजाएं चार दिशाओं, चार युगों, चार वेदों, चार वर्णों, चार आश्रमों, चार पुरुषार्थों, ब्रह्माजी के चार मुखों और हाथों समेत चार नक्षत्रों आदि की प्रतीक मानी जाती है।

गणेश पुराण में कहा गया है कि स्वास्तिक चिह्न भगवान गणेश का स्वरूप है, जिसमें सभी विघ्न-बाधाएं और अमंगल दूर करने की शक्ति है। स्वास्तिक को अविनाशी ब्रह्म की संज्ञा दी गई है, इसे धन की देवी लक्ष्मी यानी श्री का प्रतीक भी माना गया है।

गणेश पुराण में कहा गया है कि स्वास्तिक चिह्न भगवान गणेश का स्वरूप है, जिसमें सभी विघ्न-बाधाएं और अमंगल दूर करने की शक्ति है। स्वास्तिक को अविनाशी ब्रह्म की संज्ञा दी गई है, इसे धन की देवी लक्ष्मी यानी श्री का प्रतीक भी माना गया है।

तांत्रिक ग्रंथों की परंपरा मुख्य रूप से देवी पार्वती और भगवान शिव के आपसी संवाद पर टिकी है। कहा जाता है कि जिन ग्रंथों में देवी पार्वती कहती हैं और भगवान शिव सुनते हैं, उन्हें ‘निगम ग्रंथ’ कहते हैं। वहीं, जिन ग्रंथों में भगवान शिव बोलते हैं और देवी पार्वती उन्हें सुनती हैं, वे ‘आगम ग्रंथ’ कहलाते हैं। इस तरह, तंत्र शास्त्र की नींव शिव-पार्वती के संवाद से निकली है, जो हमारी परंपरा में बहुत सम्माननीय मानी जाती है।

तांत्रिक ग्रंथों की परंपरा मुख्य रूप से देवी पार्वती और भगवान शिव के आपसी संवाद पर टिकी है। कहा जाता है कि जिन ग्रंथों में देवी पार्वती कहती हैं और भगवान शिव सुनते हैं, उन्हें ‘निगम ग्रंथ’ कहते हैं। वहीं, जिन ग्रंथों में भगवान शिव बोलते हैं और देवी पार्वती उन्हें सुनती हैं, वे ‘आगम ग्रंथ’ कहलाते हैं। इस तरह, तंत्र शास्त्र की नींव शिव-पार्वती के संवाद से निकली है, जो हमारी परंपरा में बहुत सम्माननीय मानी जाती है।

महाभारत के अनुसार, विदुर—जो कि धृतराष्ट्र के भाई और उनके मंत्रियों में गिने जाते थे—यमराज के अवतार माने जाते हैं। कथा कहती है कि माण्डव्य ऋषि के श्राप के कारण यमराज को मनुष्य के रूप में जन्म लेना पड़ा, और इसी कारण उन्होंने विदुर के रूप में अवतार लिया। विदुर धर्म-शास्त्रों के गहरे जानकार थे और हमेशा सत्य की राह पर चलने के लिए तत्पर रहते थे। उनका चरित्र इस बात का प्रतीक है कि ईश्वर जब भी मानव रूप में अवतरित होते हैं, तो वे धर्म और न्याय को नई दिशा देते हैं।

महाभारत के अनुसार, विदुर—जो कि धृतराष्ट्र के भाई और उनके मंत्रियों में गिने जाते थे—यमराज के अवतार माने जाते हैं। कथा कहती है कि माण्डव्य ऋषि के श्राप के कारण यमराज को मनुष्य के रूप में जन्म लेना पड़ा, और इसी कारण उन्होंने विदुर के रूप में अवतार लिया। विदुर धर्म-शास्त्रों के गहरे जानकार थे और हमेशा सत्य की राह पर चलने के लिए तत्पर रहते थे। उनका चरित्र इस बात का प्रतीक है कि ईश्वर जब भी मानव रूप में अवतरित होते हैं, तो वे धर्म और न्याय को नई दिशा देते हैं।

जब कौरव सभा में द्रौपदी का चीर-हरण किया जा रहा था, उस समय दो कौरव भाइयों—युयुत्सु और विकर्ण—ने खुलकर इसका विरोध किया था। उन्होंने सभा में द्रौपदी की प्रार्थना का समर्थन किया और इस अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाई। महाभारत के युद्ध के दौरान भी उनका हृदय सत्य और धर्म की ओर झुका रहा, इसलिए उन्होंने कौरवों को छोड़कर पांडवों का साथ देना चुना।

जब कौरव सभा में द्रौपदी का चीर-हरण किया जा रहा था, उस समय दो कौरव भाइयों—युयुत्सु और विकर्ण—ने खुलकर इसका विरोध किया था। उन्होंने सभा में द्रौपदी की प्रार्थना का समर्थन किया और इस अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाई। महाभारत के युद्ध के दौरान भी उनका हृदय सत्य और धर्म की ओर झुका रहा, इसलिए उन्होंने कौरवों को छोड़कर पांडवों का साथ देना चुना।

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