ऋषियों एवं संतों से संबंधित रोचक तथ्य(19)

दक्षिण भारत के प्रसिद्ध योगी संत रामलिंगम ने अपने अंत समय से दो वर्ष पहले ही बता दिया था कि वे 54 वर्ष की अवस्था में इसी भौतिक शरीर के साथ अदृश्य हो जाएंगे। उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि वे शुद्ध निर्विकल्प समाधि में प्रवेश करेंगे और उनका शरीर ढूँढ़ने पर भी नहीं मिलेगा। कुछ समय बाद वैसा ही हुआ—एक दिन उन्होंने अपने शिष्यों को कहा कि दरवाज़े-खिड़कियाँ बंद करके ताला लगा दें और वे अपने कक्ष में चले गए। जब कुछ देर बाद शिष्यों ने दरवाज़ा खोला, तो संत रामलिंगम कहीं दिखाई नहीं दिए।

भगवान जगन्नाथ के परम भक्त चैतन्य महाप्रभु अधिकतर जगन्नाथपुरी में ही रहते थे और प्रायः घंटों जगन्नाथ जी की मूर्ति के समक्ष खड़े रहकर रोया करते थे। मान्यता है कि अपने अंतिम समय में वे प्रत्यक्ष रूप से भगवान जगन्नाथ के विग्रह में ही समा गए। कहा जाता है कि अंतिम दिन वे गरुड़स्तम्भ के पीछे से दर्शन न करके सीधे मंदिर के भीतर चले गए, और तभी मंदिर के दरवाज़े अपने आप बंद हो गए। इसके बाद वे कभी दिखाई नहीं पड़े—ऐसा माना जाता है कि वे जगन्नाथ जी में ही अन्तर्हित हो गए। यह कथा उनके गहन भक्ति-भाव और भगवान के साथ पूर्ण एकाकार होने की अनोखी मिसाल पेश करती है।

श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त और महान संत वल्लभाचार्य जी जब बनारस के हनुमान घाट पर दोपहर में स्नान करने गए, तो वहाँ मौजूद लोगों ने एक अद्भुत दृश्य देखा। गंगा जी की मध्यधारा में संत वल्लभाचार्य जी का शरीर दिव्य अग्नि की लपट में बदलने लगा, जो धीरे-धीरे आकाश की ओर उठती चली गई। उनका लौकिक शरीर उस अलौकिक अग्निशिखा में परिवर्तित हो गया, और इसी अग्निस्वरूप में रहकर वे अपने आराध्य श्रीकृष्ण के धाम में विलीन हो गए।

गुरु गोरखनाथ जी को गोरक्षनाथ के नाम से भी जाना जाता है, इन्हें साक्षात भगवान शिव का अवतार माना गया है जो हर काल में उपस्थित रहें हैं। महाकाल-योगशास्त्र-कल्पद्रुम में देवताओं के पूछने पर कि गोरक्षनाथ कौन हैं? स्वयं महेश्वर उत्तर देते हैं - भारतीय संस्कृति में सभी प्रकार के ज्ञान के आदिस्रोत भगवान शिव ही हैं। मान्यता है कि गोरखनाथ जी सतयुग में आधुनिक पंजाब के आस-पास के क्षेत्र में प्रकट हुए थे, त्रेतायुग में वे गोरखपुर में अधिष्ठित थे। द्वापर में वे द्वारका (हरभुज) में थे और कलियुग में उनका प्राकट्य सौराष्ट्र में काठियावाड़ के गोरखमढ़ी नामक स्थान में हुआ था।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार धर्म, काम और काल, वसु और वासुकि, अनन्त और कपिल- ये सात पृथ्वी को धारण करने वाले हैं। इन्हीं सातों में से एक कपिल मुनि हैं जिन्हें सूर्य के समान तेजस्वी बताया गया है, इनका एक नाम चक्रधनु भी है। इन्हीं भगवान कपिल ने सम्राट सगर के साठ हज़ार पुत्रों को भस्म कर दिया था, आज भी प्रतिवर्ष मकर-संक्रान्ति के दिन गंगासागर-संगम पर सहस्रों स्त्री-पुरूष भगवान कपिल के पुनीत आश्रम में इनके दर्शनों के लिये जाते हैं।

ब्रह्माजी के मानस पुत्रों में एक ब्रह्मऋषि अंगिरा ने इतनी कठोर तपस्या और उपासना की कि उनका तेज़ अग्निदेव से भी अधिक हो गया था। एक बार, जब महर्षि अंगिरा जल में तप कर रहे थे, तब उनका तेज़ देखकर स्वयं अग्निदेव प्रकट हुए और बोले कि “हे ऋषिवर, आपके सामने मेरा तेज़ फीका पड़ गया है, अब मुझे अग्नि कौन कहेगा!” तब महर्षि अंगिरा ने अग्निदेव को देवताओं तक हवि पहुँचाने का दायित्व सौंपा और उन्हें पुत्र रूप में स्वीकार किया।

सन 1960 में बाबा नीम करोली के एक अमेरिकी भक्त ने हिन्दू धर्म को अपनाया और बाबा राम दास कहे गये, उनकी लिखी गयी पुस्तकों और नीम करोली बाबा के बारे में जानकर हज़ारों लोग हर साल नैनीताल स्थित बाबा नीम करोली के आश्रम आती हैं। फेसबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग और एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स भी अपनी परेशानी के दिनों में यहाँ आये थे।

जब शंकराचार्य जी भिक्षा की तलाश में भटक रहे थे, तब एक अति निर्धन स्त्री ने एकादशी व्रत के लिए रखी आखिरी बेर को इन्हें दान कर दिया था। इस एक बेर के अलावा व्रत खोलने के लिए उसके पास कुछ नहीं था। वहां से निकलते हुए शंकराचार्य जी ने माँ लक्ष्मी के कनकधारा स्तोत्र का जाप किया और अचानक वहां बेरों की बरसात सी होने लगी और देखते ही देखते उस स्त्री के घर का आंगन बेरों से भर गया।