भक्ति एवं धर्म से संबंधित रोचक तथ्य(33)

केरल के शरण गुरुवयूर नें भगवान श्री कृष्ण की 60 फीट ऊँची और 34 फीट चौड़ी यह चित्रकला 100 दिनों में बनायी है। शरण गुरुवयूर अभी भी इस चित्रकला को स्थापित कराने के लिये संघर्ष कर रहें हैं, इन्होनें भगवान श्री विष्णु के महाअवतारों की कई अन्य चित्रकलाएं भी बनाई हैं जो बहुत लोकप्रिय हैं।

केरल के शरण गुरुवयूर नें भगवान श्री कृष्ण की 60 फीट ऊँची और 34 फीट चौड़ी यह चित्रकला 100 दिनों में बनायी है। शरण गुरुवयूर अभी भी इस चित्रकला को स्थापित कराने के लिये संघर्ष कर रहें हैं, इन्होनें भगवान श्री विष्णु के महाअवतारों की कई अन्य चित्रकलाएं भी बनाई हैं जो बहुत लोकप्रिय हैं।

श्मशानों के द्वारपाल शिव जी के अवतार भैरव होते हैं, काशी के द्वारपाल काल भैरव हैं, इसी प्रकार उज्जैन के द्वारपाल बटुक भैरव हैं। काशी के दक्षिण ओर स्थित राजा हरिश्चंद्र घाट में शिव जी, मसान रूप में पूजे जाते हैं, जो सर्वाधिक भयंकर रूप वाले तथा श्मशान के स्वामी हैं।

श्मशानों के द्वारपाल शिव जी के अवतार भैरव होते हैं, काशी के द्वारपाल काल भैरव हैं, इसी प्रकार उज्जैन के द्वारपाल बटुक भैरव हैं। काशी के दक्षिण ओर स्थित राजा हरिश्चंद्र घाट में शिव जी, मसान रूप में पूजे जाते हैं, जो सर्वाधिक भयंकर रूप वाले तथा श्मशान के स्वामी हैं।

शिव जी तथा माँ पार्वती श्मशान में निवास करते हैं, उनके निवास स्थल कैलाश पर्वत को भी एक दिव्य श्मशान ही माना गया है। इसके अलावा काशी या वाराणसी, उज्जैन की गिनती भी दिव्य श्मशान स्थलों में की जाती हैं।

शिव जी तथा माँ पार्वती श्मशान में निवास करते हैं, उनके निवास स्थल कैलाश पर्वत को भी एक दिव्य श्मशान ही माना गया है। इसके अलावा काशी या वाराणसी, उज्जैन की गिनती भी दिव्य श्मशान स्थलों में की जाती हैं।

वीर-साधना नामक तंत्र में मृत देह से प्राप्त वस्तुओं, शव के तांत्रिक उपयोग तथा साधना पद्धति पर विशेष प्रकाश डाला गया हैं। इस प्रकार की तामसी साधनाएँ अत्यंत ही भयंकर और डरावनी होती हैं तथा एकांत में ही की जाती हैं, इसी प्रकार की साधना करने वाले साधक कपाली, अघोरी इत्यादि नाम से जाने जाते हैं।

वीर-साधना नामक तंत्र में मृत देह से प्राप्त वस्तुओं, शव के तांत्रिक उपयोग तथा साधना पद्धति पर विशेष प्रकाश डाला गया हैं। इस प्रकार की तामसी साधनाएँ अत्यंत ही भयंकर और डरावनी होती हैं तथा एकांत में ही की जाती हैं, इसी प्रकार की साधना करने वाले साधक कपाली, अघोरी इत्यादि नाम से जाने जाते हैं।

आदि काल से मनुष्य धन से सम्पन्न होने हेतु एवं अपने धन की रक्षा हेतु, यक्षों की आराधना करते हैं, भिन्न-भिन्न यक्षों की प्राचीन पाषाण प्रतिमायें भारत के विभिन्न संग्रहालयों में सुरक्षित हैं, जो खुदाई से प्राप्त हुई हैं। तंत्र-ग्रंथों में यक्षिणी तथा यक्ष साधना से सम्बंधित विस्तृत विवरण प्राप्त होते हैं।

आदि काल से मनुष्य धन से सम्पन्न होने हेतु एवं अपने धन की रक्षा हेतु, यक्षों की आराधना करते हैं, भिन्न-भिन्न यक्षों की प्राचीन पाषाण प्रतिमायें भारत के विभिन्न संग्रहालयों में सुरक्षित हैं, जो खुदाई से प्राप्त हुई हैं। तंत्र-ग्रंथों में यक्षिणी तथा यक्ष साधना से सम्बंधित विस्तृत विवरण प्राप्त होते हैं।

नदी किनारे या श्मशान स्थित बिल्व वृक्ष के निचे, चांडाल के मृत देह के ऊपर बैठकर, उत्तर दिशा की ओर प्रवाहित होने वाली नदी को वीर साधना में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बताया गया हैं। वीरों के विषय में सर्वप्रथम पृथ्वीराज रासो में उल्लेख है, वहां इनकी संख्या 52 बताई गई है। इन्हें भैरवी के अनुयायी या भैरव का गण कहा गया है।

नदी किनारे या श्मशान स्थित बिल्व वृक्ष के निचे, चांडाल के मृत देह के ऊपर बैठकर, उत्तर दिशा की ओर प्रवाहित होने वाली नदी को वीर साधना में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बताया गया हैं। वीरों के विषय में सर्वप्रथम पृथ्वीराज रासो में उल्लेख है, वहां इनकी संख्या 52 बताई गई है। इन्हें भैरवी के अनुयायी या भैरव का गण कहा गया है।

सन 1332 में असम पर मुग़ल बादशाह मोहम्मद शाह ने एक लाख घुड़सवारों के साथ चढ़ाई की थी। तब यहां हज़ारों तांत्रिक मौजूद थे, उन्होंने मायोंग को बचाने के लिए एक ऐसी दीवार खड़ी कर दी थी जिसको पार करते ही सैनिक गायब हो जाते थे।

सन 1332 में असम पर मुग़ल बादशाह मोहम्मद शाह ने एक लाख घुड़सवारों के साथ चढ़ाई की थी। तब यहां हज़ारों तांत्रिक मौजूद थे, उन्होंने मायोंग को बचाने के लिए एक ऐसी दीवार खड़ी कर दी थी जिसको पार करते ही सैनिक गायब हो जाते थे।

शरीर-रचना विज्ञान के अनुसार सौभाग्यवती स्त्रियां मांग में जिस स्थान पर सिंदूर सजाती हैं, वह स्थान ब्रह्मरंध्र और अहिम नामक मर्मस्थल के ठीक ऊपर है। स्त्रियों का यह मर्मस्थल अत्यंत कोमल होता है, जिसकी सुरक्षा के निमित्त स्त्रियां यहां पर सिंदूर लगाती हैं।

शरीर-रचना विज्ञान के अनुसार सौभाग्यवती स्त्रियां मांग में जिस स्थान पर सिंदूर सजाती हैं, वह स्थान ब्रह्मरंध्र और अहिम नामक मर्मस्थल के ठीक ऊपर है। स्त्रियों का यह मर्मस्थल अत्यंत कोमल होता है, जिसकी सुरक्षा के निमित्त स्त्रियां यहां पर सिंदूर लगाती हैं।

काशी के मणिकर्णिका घाट को भगवान शिव ने अनंत शांति का वरदान दिया है, इस घाट की विशेषता है कि यहां चिता की आग कभी शांत नहीं होती है, यानी यहां हर समय किसी ना किसी का शवदाह हो रहा होता है, हर रोज यहां 200 से 300 शव का अंतिम संस्कार किया जाता है।

काशी के मणिकर्णिका घाट को भगवान शिव ने अनंत शांति का वरदान दिया है, इस घाट की विशेषता है कि यहां चिता की आग कभी शांत नहीं होती है, यानी यहां हर समय किसी ना किसी का शवदाह हो रहा होता है, हर रोज यहां 200 से 300 शव का अंतिम संस्कार किया जाता है।

भगवान विष्णु, श्रीराम, और कृष्ण को जापान में नारईनतेन के नाम से जाना जाता है, इसी प्रकार भगवान शिव को फुदो म्यो और ब्रह्मा जी को बोन्तें और गणेश जी को कान्गितें कहा जाता है। माँ पार्वती, काली और माँ दुर्गा को जापान में उमाही के नाम से जाना जाता है और माँ सरस्वती को बेन्जातें कहा जाता है।

भगवान विष्णु, श्रीराम, और कृष्ण को जापान में नारईनतेन के नाम से जाना जाता है, इसी प्रकार भगवान शिव को फुदो म्यो और ब्रह्मा जी को बोन्तें और गणेश जी को कान्गितें कहा जाता है। माँ पार्वती, काली और माँ दुर्गा को जापान में उमाही के नाम से जाना जाता है और माँ सरस्वती को बेन्जातें कहा जाता है।

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