गौ-माता से संबंधित रोचक तथ्य(53)

चरक संहिता के आधार पर बीएन माथुर ने लिखा है कि भारत में हीट एसिड कागुलेटेड मिल्क के बारे में ईसा से 300 वर्ष पूर्व का प्रमाण मिलता है। कुषाण और सतवाहन काल में इसका उल्लेख मिलता रहा है। इसे ही आज पनीर के रूप में जानते हैं। ऋग्वेद के इस श्लोक दृते॑रिव तेऽवृ॒कम॑स्तु स॒ख्यम् । अच्छि॑द्रस्य दध॒न्वत॒: सुपू॑र्णस्य दध॒न्वत॑: में भी दूध से निर्मित होने वाली पनीर जैसी चीज़ का वर्णन मिलता है, भारत में दही से मक्खन अलग करने की प्रक्रिया काफ़ी पुरानी रही है। पुराणों में वर्णित है कि भगवान श्रीकृष्ण बचपन में मक्खन चुरा कर खाया करते थे, गौ दुग्ध से निर्मित कई खाद्य पदार्थों का सेवन भारत में प्राचीन काल से ही होता आया है।

महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है, जहाँ गाय निर्भय होकर बैठती है, वहाँ के पाप नष्ट हो जाते हैं और वहाँ के प्राणी स्वर्गगामी होते हैं। रविवार को गौ माता को स्नान कराने से घर में लक्ष्मी का वास स्थायी रहता है। गौ के दूध में स्वर्ण तत्व पाए जाते हैं, जो माँ के दूध के अलावा कहीं और नहीं मिलते। ये मान्यताएँ गौ माता की दिव्यता और जीवन में उनके महत्त्व को दर्शाती हैं।

शास्त्रों में गाय को सुरभि, कामधेनु, अर्च्या, यज्ञपदी, कल्याणी, इज्या, बहुला और कामदुघा जैसे नामों से सम्मान दिया गया है। वेदों में उन्हें ‘अघ्न्या’ यानी अवध्य कहा गया है, जिसका अर्थ है कि गाय निर्दोष और पीड़ा देने लायक नहीं है। ऋग्वेद (8.101.15) कहता है—“मा गामनागामदितिं वधिष्ट,” अर्थात गाय को किसी भी तरह की हानि न पहुँचाएँ। अतः गौ हिंसा अक्षम्य मानी गई है।

विष्णुधर्मोत्तर पुराण कहता है कि अनिष्ट नाश के लिए गौ माता का पूजन करें। जो व्यक्ति प्रतिदिन गौ सेवा या रोटी-चारा दान करता है, उसकी परेशानियाँ अपने आप दूर हो जाती हैं। भोजन से पहले गाय को अर्पित करने वाला श्री, विजय और ऐश्वर्य पाता है। शनिवार को सरसों का तेल लगाकर तिल के दाने वाली रोटी चितकबरी या काली गाय को खिलाने से दरिद्रता मिटती है।

ब्रह्मवैवर्तपुराण में कहा गया है कि गौ माता के चरणों में समस्त तीर्थों का वास है। जो व्यक्ति उनके पैरों की मिट्टी का रोज़ तिलक करता है, उसे अन्य तीर्थों की यात्रा करने की आवश्यकता नहीं पड़ती—उसे सब पुण्य वहीं प्राप्त हो जाता है। महाभारत में भी उल्लेख है कि जो व्यक्ति सुबह उठकर सबसे पहले गौ माता के दर्शन करता है, उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती। महाभारत में स्पष्ट कहा गया है—यत्पुण्यं सर्वयज्ञेषु दीक्षया च लभेन्नरः। तत्पुण्यं लभते सद्यो गोभ्यो दत्वा तृणानि च, यानी समस्त यज्ञ और तीर्थ-स्नान का जो पुण्य है, वह मात्र गौ माता को चारा अर्पित करने से मिल जाता है।

शास्त्रीय मान्यता कहती है कि गौ माता को कभी भूलकर भी अपनी जूठन नहीं खिलानी चाहिए, क्योंकि वह जगदंबा का ही स्वरूप मानी जाती हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने कहा है—पंचगव्यप्राशनं महापातकनाशनम्, जिसका अर्थ है कि गाय से मिलने वाली हर चीज़—दूध, गोबर, गौमूत्र, घी और दही—हमारे लिए अत्यंत उपयोगी और पवित्र है। अगर गौ माता आपके दरवाजे पर आकर रंभाए या उसे चाटने लगे, तो यह बहुत शुभ माना जाता है। ठीक वैसे ही, यात्रा पर निकलते समय गाय का दर्शन होना भी मंगलसूचक होता है। पुराने ज़माने में घर के आँगन में बनी रंगोली पर गाय के पैर का पड़ना बेहद सौभाग्यशाली समझा जाता था। साथ ही, रोज़ाना गौ माता को भोजन देने से नवग्रह भी शांत रहते हैं।

प्राचीन ग्रंथों में इंद्रदेव के पास सुरभि, समुद्र मंथन के 14 रत्नों में एक कामधेनु, पद्मा, कपिला आदि गायों का महत्व बताया गया है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देवजी ने असि, मसि व कृषि गौ वंश का ज्ञान दिया है। धार्मिक ग्रंथों में लिखा है गावो विश्वस्य मातर: अर्थात गाय विश्व की माता है, गौ माता का जंगल से घर वापस लौटने का संध्या का समय (गोधूलि वेला) अत्यंत शुभ एवं पवित्र मानी गयी है। मां शब्द की उत्पत्ति भी गौ मुख से हुई मानी जाती है, जब गौ वत्स रंभाता है तो मां शब्द गुंजायमान होता है। मानव समाज नें भी मां शब्द कहना गौ-माता से ही सीखा है।

भविष्य पुराण के अनुसार, गाय के सींगों में ही तीनों लोकों के देवी-देवताओं का वास माना जाता है। सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा और पालनकर्ता विष्णु गौ के सींगों के निचले हिस्से में विराजते हैं, तो बीच के भाग में शिवशंकर का स्थान है। गाय के ललाट में माँ गौरी और नासिका हिस्से में भगवान कार्तिकेय का निवास बताया गया है। जो व्यक्ति गौ माता के खुर से उड़ने वाली धूल को अपने मस्तक पर धारण करता है, वह ठीक वैसे ही पवित्र हो जाता है मानो तीर्थ जल में स्नान कर चुका हो। इस तरह गौ माता को पूजने से सारे पाप दूर होने की भी मान्यता है, जो कि उनकी दिव्यता का प्रतीक है।

शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि गाय एक ऐसा झरना है, जिसमें सैकड़ों धाराएँ होती हैं और वह अनंत है—दूसरे झरने भले समय के साथ सूख जाते हों, लेकिन गाय रूपी झरना कभी सूखता नहीं। अपनी संतति के ज़रिए यह प्रवाह निरंतर बना रहता है, और इस ‘झरने’ को एक स्थान से दूसरे स्थान पर सहजता से ले जाया जा सकता है। यह उपमा बताती है कि गाय अपने दूध और संतानों के माध्यम से लगातार मानव जीवन को पोषण देती है।

ऋग्वेद में गौ को ‘अदिति’ कहा गया है—‘दिति’ का अर्थ है ‘नाश’ और ‘अदिति’ का मतलब ‘अविनाशी अमृतत्व’। इस तरह वेद ने गाय को अमृतत्व का प्रतीक माना है। श्रीमद्भागवत में श्रीशुकदेव जी वर्णन करते हैं कि भगवान गोविंद (श्रीकृष्ण) जब अपनी समृद्धि, सौंदर्य और ज्ञान-महिमा देखते, तो वे स्वयं भी हैरत में पड़ जाते। कहा जाता है कि उनके पास जो भी ऐश्वर्य, भक्ति, ऋषि-मुनि और देवताओं की कृपा एक साथ मौजूद थी, वह गौ-सेवा का ही फल था। यह प्रसंग गौ माता के प्रति भगवान तक की अगाध श्रद्धा को दर्शाता है।