पर्वों एवं त्योहारों से संबंधित रोचक तथ्य(5)

रथयात्रा पर्व का उल्लेख कथा उपनिषद में भी किया गया है, इसके अनुसार पूरी में होने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में रथ को शरीर का प्रतीक माना गया है। भगवान की मूर्ति को आत्मा और रथ चलाने वाले को विचारों का प्रतीक माना गया है।

रथयात्रा पर्व का उल्लेख कथा उपनिषद में भी किया गया है, इसके अनुसार पूरी में होने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में रथ को शरीर का प्रतीक माना गया है। भगवान की मूर्ति को आत्मा और रथ चलाने वाले को विचारों का प्रतीक माना गया है।

महाभारत का युद्ध और द्वापर युग का समापन भी अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था, इस दिन जो भी पुण्य कर्म किये जाते हैं, उनका फल अक्षय होता है अर्थात कभी समाप्त नहीं होता। इसी कारण इस दिन किये गए दान, हवन, पूजन या साधना को अक्षय (संपूर्ण) माना गया है।

महाभारत का युद्ध और द्वापर युग का समापन भी अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था, इस दिन जो भी पुण्य कर्म किये जाते हैं, उनका फल अक्षय होता है अर्थात कभी समाप्त नहीं होता। इसी कारण इस दिन किये गए दान, हवन, पूजन या साधना को अक्षय (संपूर्ण) माना गया है।

अक्षय तृतीया के दिन ही बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजन किया जाता है और लक्ष्मी-नारायण के दर्शन किये जाते है। उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल बद्रीनाथ के कपाट भी अक्षय तृतीया के दिन ही खोले जाते है।

अक्षय तृतीया के दिन ही बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजन किया जाता है और लक्ष्मी-नारायण के दर्शन किये जाते है। उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल बद्रीनाथ के कपाट भी अक्षय तृतीया के दिन ही खोले जाते है।

भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी का जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था, इसी दिन ब्रह्रमा जी के पुत्र अक्षय कुमार का भी जन्म हुआ था इसीलिए इसको अक्षय तिथि कहते है। अक्षय तृतीया की तिथि बहुत शुभ मानी जाती है, इस तिथि को बिना पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे- विवाह, गृह प्रवेश, वस्त्र-आभूषण खरीदना, वाहन एवं घर आदि खरीदा जा सकता है।

भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी का जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था, इसी दिन ब्रह्रमा जी के पुत्र अक्षय कुमार का भी जन्म हुआ था इसीलिए इसको अक्षय तिथि कहते है। अक्षय तृतीया की तिथि बहुत शुभ मानी जाती है, इस तिथि को बिना पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे- विवाह, गृह प्रवेश, वस्त्र-आभूषण खरीदना, वाहन एवं घर आदि खरीदा जा सकता है।

मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भगवान श्रीराम और माता सीता का पावन विवाह संपन्न हुआ था। इसी यादगार दिवस को हर साल “विवाह पंचमी” के तौर पर मनाया जाता है। इस महत्त्वपूर्ण प्रसंग का उल्लेख गोस्वामी तुलसीदास की श्रीरामचरितमानस में मिलता है, जहाँ सीता-राम की दिव्य प्रेम-कथा और उनके विवाह की मनोहर झलक प्रस्तुत की गई है।

मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भगवान श्रीराम और माता सीता का पावन विवाह संपन्न हुआ था। इसी यादगार दिवस को हर साल “विवाह पंचमी” के तौर पर मनाया जाता है। इस महत्त्वपूर्ण प्रसंग का उल्लेख गोस्वामी तुलसीदास की श्रीरामचरितमानस में मिलता है, जहाँ सीता-राम की दिव्य प्रेम-कथा और उनके विवाह की मनोहर झलक प्रस्तुत की गई है।

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