देवी माँ से संबंधित रोचक तथ्य(17)

बंगाल के बीरभूम जिल में स्थित श्री तारापीठ मंदिर अघोरी-तांत्रिकों के लिये प्रसिद्द है। यहां मां काली की एक विशाल प्रतिमा भी स्थापित है, यह मंदिर महाश्मशान घाट के नजदीक स्थित है। मान्यता ही कि है कि इस मसान की अग्नी कभी शांत नहीं पड़ती, रात में यह श्मशान घाट अघोरियां की गुप्त साधनाओं का विशेष ठिकाना रहता है। बंगाल में सदियों से शक्ति उपासना होती रही है, अघोरियों के लिए यह स्थान बेहद पवित्र माना गया है। यहाँ हैरान करने वाली बात यह है कि यहाँ की द्वारिका नदी दक्षिण से उत्तर की दिशा में बहती है जबकि भारत की अन्य नदियाँ उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं, तारापीठ राजा दशरथ के कुलपुरोहित वशिष्ठ मुनि का सिद्धासन और तारा माँ का अधिष्ठान है।

बंगाल के बीरभूम जिल में स्थित श्री तारापीठ मंदिर अघोरी-तांत्रिकों के लिये प्रसिद्द है। यहां मां काली की एक विशाल प्रतिमा भी स्थापित है, यह मंदिर महाश्मशान घाट के नजदीक स्थित है। मान्यता ही कि है कि इस मसान की अग्नी कभी शांत नहीं पड़ती, रात में यह श्मशान घाट अघोरियां की गुप्त साधनाओं का विशेष ठिकाना रहता है। बंगाल में सदियों से शक्ति उपासना होती रही है, अघोरियों के लिए यह स्थान बेहद पवित्र माना गया है। यहाँ हैरान करने वाली बात यह है कि यहाँ की द्वारिका नदी दक्षिण से उत्तर की दिशा में बहती है जबकि भारत की अन्य नदियाँ उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं, तारापीठ राजा दशरथ के कुलपुरोहित वशिष्ठ मुनि का सिद्धासन और तारा माँ का अधिष्ठान है।

अर्जुन और नागकन्या उलूपी के पुत्र इरावन हैं, इनके मंदिर मुख्य रूप से दक्षिण भारत में स्थित हैं। किन्नर लोग इनको ही अपना पति मानते हैं। तमिलनाडु के कूवागम गांव में वर्ष में एक दिन ऐसा भी आता है जब हजारों किन्नर रंग-बिरंगी साड़ियां पहन कर और अपने जूड़े को चमेली के फूलों से सजाकर इरावन से विवाह करते है। हालांकि यह विवाह मात्र एक दिन के लिए ही होता है, अगले दिन इरावन देवता की मृत्यु के साथ ही उनका वैवाहिक जीवन समाप्त हो जाता है। मान्यता है कि इसी दिन इरावन की महाभारत के युद्ध में मृत्यु हुई थी।

अर्जुन और नागकन्या उलूपी के पुत्र इरावन हैं, इनके मंदिर मुख्य रूप से दक्षिण भारत में स्थित हैं। किन्नर लोग इनको ही अपना पति मानते हैं। तमिलनाडु के कूवागम गांव में वर्ष में एक दिन ऐसा भी आता है जब हजारों किन्नर रंग-बिरंगी साड़ियां पहन कर और अपने जूड़े को चमेली के फूलों से सजाकर इरावन से विवाह करते है। हालांकि यह विवाह मात्र एक दिन के लिए ही होता है, अगले दिन इरावन देवता की मृत्यु के साथ ही उनका वैवाहिक जीवन समाप्त हो जाता है। मान्यता है कि इसी दिन इरावन की महाभारत के युद्ध में मृत्यु हुई थी।

इंदौर में स्थित कालरात्रि माँ का मंदिर निःसंतान दंपतियों के लिये किसी आशीर्वाद से कम नहीं है, मान्यता है कि माँ के इस मंदिर में निःसंतान लोगों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद जरूर मिलता है। यहाँ इस मंदिर में भक्त माँ को तीन नारियल चढ़ाकर गोद भरने की याचना करते हैं और पुजारी भक्त को गले में बाँधने के लिए मौली का धागा देते हैं। पाँच हफ्तों तक यह धागा गले में बाँधना होता है, मन्नत पूरी हो जाने पर मंदिर में पाँच नारियलों का तोरण यहाँ स्थित पेड़ पर बाँधना होता है।

इंदौर में स्थित कालरात्रि माँ का मंदिर निःसंतान दंपतियों के लिये किसी आशीर्वाद से कम नहीं है, मान्यता है कि माँ के इस मंदिर में निःसंतान लोगों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद जरूर मिलता है। यहाँ इस मंदिर में भक्त माँ को तीन नारियल चढ़ाकर गोद भरने की याचना करते हैं और पुजारी भक्त को गले में बाँधने के लिए मौली का धागा देते हैं। पाँच हफ्तों तक यह धागा गले में बाँधना होता है, मन्नत पूरी हो जाने पर मंदिर में पाँच नारियलों का तोरण यहाँ स्थित पेड़ पर बाँधना होता है।

उत्तरप्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के बांदा जनपद में खत्री पहाड़ है, इस पहाड़ के अधिकतर पत्थर सफ़ेद रंग के हैं। लोक मान्यताओं के अनुसार मिर्जापुर में विराजमान होने से पहले माँ विंध्यवासिनी ने खत्री पहाड़ को ही अपने निवास स्थल के रूप में चुना था। लेकिन इस पहाड़ ने देवी मां का भार सहन करने में असमर्थता दिखाई थी, तब माँ नें मिर्ज़ापुर के विंध्याचल पहाड़ी को अपना निवास स्थल बनाया था। माँ ने खत्री पहाड़ को कोढ़ रोग का श्राप दिया था इसी कारण यहाँ के पत्थर सफ़ेद रंग के हैं, बाद में क्षमा मांगने पर माता नें नवरात्र की नवमी तिथि को पहाड़ पर आने का वचन दिया था।

उत्तरप्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के बांदा जनपद में खत्री पहाड़ है, इस पहाड़ के अधिकतर पत्थर सफ़ेद रंग के हैं। लोक मान्यताओं के अनुसार मिर्जापुर में विराजमान होने से पहले माँ विंध्यवासिनी ने खत्री पहाड़ को ही अपने निवास स्थल के रूप में चुना था। लेकिन इस पहाड़ ने देवी मां का भार सहन करने में असमर्थता दिखाई थी, तब माँ नें मिर्ज़ापुर के विंध्याचल पहाड़ी को अपना निवास स्थल बनाया था। माँ ने खत्री पहाड़ को कोढ़ रोग का श्राप दिया था इसी कारण यहाँ के पत्थर सफ़ेद रंग के हैं, बाद में क्षमा मांगने पर माता नें नवरात्र की नवमी तिथि को पहाड़ पर आने का वचन दिया था।

हिमाचल प्रदेश के शिमला में स्थित श्राई कोटि माता के मंदिर में पति-पत्नी एक साथ दर्शन नहीं करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार जब कार्तिकेय जी नें कभी भी विवाह ना करने का प्रण लिया तब, माँ पार्वती जी उनसे रुष्ट हो कर यहाँ आयी थीं। कथा के अनुसार माँ पार्वती नें कहा था कि जो भी पति-पत्नी एक साथ यहाँ उनके दर्शन करेंगे वो एक दुसरे से अलग हो जायेंगे। इसी मान्यता के कारण आज भी यहां पति-पत्नी एक साथ पूजा नहीं करते हैं, जब भी पति-पत्नी यहां दर्शन करने आते हैं तो वे अलग-अलग ही माता के दर्शन करते हैं।

हिमाचल प्रदेश के शिमला में स्थित श्राई कोटि माता के मंदिर में पति-पत्नी एक साथ दर्शन नहीं करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार जब कार्तिकेय जी नें कभी भी विवाह ना करने का प्रण लिया तब, माँ पार्वती जी उनसे रुष्ट हो कर यहाँ आयी थीं। कथा के अनुसार माँ पार्वती नें कहा था कि जो भी पति-पत्नी एक साथ यहाँ उनके दर्शन करेंगे वो एक दुसरे से अलग हो जायेंगे। इसी मान्यता के कारण आज भी यहां पति-पत्नी एक साथ पूजा नहीं करते हैं, जब भी पति-पत्नी यहां दर्शन करने आते हैं तो वे अलग-अलग ही माता के दर्शन करते हैं।

राजस्थान के पाली जिले में माँ शीतला का एक दिव्य मंदिर है, इस मंदिर में एक प्राचीन घड़ा है जिसे केवल शीतला सप्तमी और ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन ही देखा जाता है। करीब 800 वर्षों से शीतला सप्तमी और ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भक्तगण इस अद्भुत घड़े का दर्शन करते हैं, इन दोनों दिनों में इस घड़े का पत्थर हटाया जाता है और इसे पानी से भरा जाता है। मान्यता है कि इस घड़े में चाहे कितना भी पानी डाला जाए, ये कभी भरता नहीं है। दोनों मौकों पर हजारों लीटर पानी इस घड़े में भरा जाता है लेकिन फिर भी यह नहीं भरता है, अंत में पुजारी द्वारा माँ के चरणों में दूध का भोग चढ़ा कर इसमें डालने से ही यह घड़ा भरता है।

राजस्थान के पाली जिले में माँ शीतला का एक दिव्य मंदिर है, इस मंदिर में एक प्राचीन घड़ा है जिसे केवल शीतला सप्तमी और ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन ही देखा जाता है। करीब 800 वर्षों से शीतला सप्तमी और ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भक्तगण इस अद्भुत घड़े का दर्शन करते हैं, इन दोनों दिनों में इस घड़े का पत्थर हटाया जाता है और इसे पानी से भरा जाता है। मान्यता है कि इस घड़े में चाहे कितना भी पानी डाला जाए, ये कभी भरता नहीं है। दोनों मौकों पर हजारों लीटर पानी इस घड़े में भरा जाता है लेकिन फिर भी यह नहीं भरता है, अंत में पुजारी द्वारा माँ के चरणों में दूध का भोग चढ़ा कर इसमें डालने से ही यह घड़ा भरता है।

दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक में द्रौपदी जी की पूजा होती है और यहाँ 400 से भी अधिक द्रौपदी मंदिर हैं। इसके अतिरिक्त श्रीलंका, मलेशिया, मॉरिशस, साउथ अफ्रीका के कुछ स्थानों पर भी द्रौपदी जी की पूजा होती है और यहाँ भी इनके मंदिर स्थित हैं। दक्षिण भारत के कुछ स्थानों पर द्रौपदी जी को ग्राम देवी और माँ काली का अवतार भी माना जाता है, और इन्हें द्रौपदी अम्मन के नाम से जाना जाता है। दक्षिण के वन्नियार लोग मुख्य रूप से द्रौपदी अम्मन की पूजा करते हैं, और चित्तूर के दुर्गासमुद्रम गाँव में द्रौपदी अम्मन का सालाना पर्व भी मनाया जाता है।

दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक में द्रौपदी जी की पूजा होती है और यहाँ 400 से भी अधिक द्रौपदी मंदिर हैं। इसके अतिरिक्त श्रीलंका, मलेशिया, मॉरिशस, साउथ अफ्रीका के कुछ स्थानों पर भी द्रौपदी जी की पूजा होती है और यहाँ भी इनके मंदिर स्थित हैं। दक्षिण भारत के कुछ स्थानों पर द्रौपदी जी को ग्राम देवी और माँ काली का अवतार भी माना जाता है, और इन्हें द्रौपदी अम्मन के नाम से जाना जाता है। दक्षिण के वन्नियार लोग मुख्य रूप से द्रौपदी अम्मन की पूजा करते हैं, और चित्तूर के दुर्गासमुद्रम गाँव में द्रौपदी अम्मन का सालाना पर्व भी मनाया जाता है।

माँ सरस्वती का एक नाम वागदेवी भी है, यह नाम उन्हें ब्रह्मा जी ने दिया था जिसका अर्थ है वह देवी जो वाणी और ध्वनि का प्रतीक हैं। इनका आसन कमल का पुष्प है, जिसे परम ज्ञान का प्रतीक माना गया है। पूर्वी भारत के कुछ स्थानों पर माँ सरस्वती को भगवान शिव और माँ दुर्गा की पुत्री माना जाता है, इसी कारण इन्हें भगवान गणेश और कुमार कार्तिकेय की बहन भी कहा जाता है।

माँ सरस्वती का एक नाम वागदेवी भी है, यह नाम उन्हें ब्रह्मा जी ने दिया था जिसका अर्थ है वह देवी जो वाणी और ध्वनि का प्रतीक हैं। इनका आसन कमल का पुष्प है, जिसे परम ज्ञान का प्रतीक माना गया है। पूर्वी भारत के कुछ स्थानों पर माँ सरस्वती को भगवान शिव और माँ दुर्गा की पुत्री माना जाता है, इसी कारण इन्हें भगवान गणेश और कुमार कार्तिकेय की बहन भी कहा जाता है।

कामाख्या मंदिर के समीप एक मंदिर में आपको माँ की मूर्ति मिलेगी, इस मंदिर का नाम कामादेव मंदिर है। इस मंदिर परिषद में आपको कई देवी-देवताओं की आकृतियां देखने को मिल जाएगी, ऐसा माना जाता है कि यहाँ पर आने वाले भक्त की हर मुराद पूरी होती है।

कामाख्या मंदिर के समीप एक मंदिर में आपको माँ की मूर्ति मिलेगी, इस मंदिर का नाम कामादेव मंदिर है। इस मंदिर परिषद में आपको कई देवी-देवताओं की आकृतियां देखने को मिल जाएगी, ऐसा माना जाता है कि यहाँ पर आने वाले भक्त की हर मुराद पूरी होती है।

मध्य प्रदेश के दतिया जिले में माँ पीताम्बरा सिद्धपीठ है, चर्तुभुज रूप में विराजमान मां पीतांबरा के वैभव से सभी की मनोकामनायें पूरी होती है। आठवीं महाविद्या मां बगलामुखी को ही माँ पीतांबरा के रूप में पूजा जाता है, यहाँ माँ पीताम्बरा दिन में तीन बार अपना रुप बदलती हैं। यहाँ स्थित महाभारत कालीन वनखण्डेश्वर शिव मंदिर में भगवान शिव की तंत्रेश्वर स्वरुप में पूजा होती है, महादेव के दरबार से बाहर निकलते ही दस महाविद्याओं में से एक मां धूमावती के दर्शन होते हैं। यह दर्शन केवल आरती के समय ही किये जा सकते हैं, बाकी समय मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। राजा हो या रंक, मां के नेत्र सभी पर एक समान कृपा बरसाते हैं।

मध्य प्रदेश के दतिया जिले में माँ पीताम्बरा सिद्धपीठ है, चर्तुभुज रूप में विराजमान मां पीतांबरा के वैभव से सभी की मनोकामनायें पूरी होती है। आठवीं महाविद्या मां बगलामुखी को ही माँ पीतांबरा के रूप में पूजा जाता है, यहाँ माँ पीताम्बरा दिन में तीन बार अपना रुप बदलती हैं। यहाँ स्थित महाभारत कालीन वनखण्डेश्वर शिव मंदिर में भगवान शिव की तंत्रेश्वर स्वरुप में पूजा होती है, महादेव के दरबार से बाहर निकलते ही दस महाविद्याओं में से एक मां धूमावती के दर्शन होते हैं। यह दर्शन केवल आरती के समय ही किये जा सकते हैं, बाकी समय मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। राजा हो या रंक, मां के नेत्र सभी पर एक समान कृपा बरसाते हैं।

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