भारत से संबंधित रोचक तथ्य(25)

बिहार के पटना में एक रहस्यमयी कुंवां है, इसे अगम कुंवे के नाम से जाना जाता है और यह लगभग दो हज़ार वर्ष पुराना माना गया है। आश्चर्य की बात यह है कि भयंकर सूखे और अकाल की स्थितियों में भी कभी भी इस कुंवे का पानी नहीं सूखता है। इस कुंवे का जल स्तर मौसम के अनुसार कभी-कभी बदलता रहता है लेकिन यह कुंवा कभी सूखता नहीं है, सम्राट अशोक के समय भी इस कुएं के रहस्य को जानने की तीन बार कोशिशें की गयी लेकिन कोई भी इसका कारण पता नहीं लगा पाया।

बिहार के पटना में एक रहस्यमयी कुंवां है, इसे अगम कुंवे के नाम से जाना जाता है और यह लगभग दो हज़ार वर्ष पुराना माना गया है। आश्चर्य की बात यह है कि भयंकर सूखे और अकाल की स्थितियों में भी कभी भी इस कुंवे का पानी नहीं सूखता है। इस कुंवे का जल स्तर मौसम के अनुसार कभी-कभी बदलता रहता है लेकिन यह कुंवा कभी सूखता नहीं है, सम्राट अशोक के समय भी इस कुएं के रहस्य को जानने की तीन बार कोशिशें की गयी लेकिन कोई भी इसका कारण पता नहीं लगा पाया।

चीनी यात्री व्हेनसांग ने कुरुक्षेत्र में हुये युद्ध का वर्णन करते हुये कहा था कि, यहाँ मृत शरीरों के बड़े-बड़े ढेर लगे हुये हैं और चारों तरफ हड्डियां फैली हुई हैं। यह बहुत पुराने समय की बात लगती है क्योंकि मृत लोगों की यह हड्डियां सामान्य मनुष्यों की हड्डियों से बहुत बड़ी हैं। यहाँ व्हेनसांग नें कुरुक्षेत्र में पड़ी हड्डियों के बारे में बताया है, पूर्व काल में मनुष्यों की आयु और आकार दोनों ही बहुत ज्यादा होते था। सतयुग में जहां मनुष्यों की लम्बाई आज के हाथ के अनुसार इक्कीस हाथ है, वही त्रेतायुग में चौदह हाथ, द्वापर युग में सात हाथ और कलियुग में साढ़े तीन हाथ यानि लगभग 6 फीट होती है।

चीनी यात्री व्हेनसांग ने कुरुक्षेत्र में हुये युद्ध का वर्णन करते हुये कहा था कि, यहाँ मृत शरीरों के बड़े-बड़े ढेर लगे हुये हैं और चारों तरफ हड्डियां फैली हुई हैं। यह बहुत पुराने समय की बात लगती है क्योंकि मृत लोगों की यह हड्डियां सामान्य मनुष्यों की हड्डियों से बहुत बड़ी हैं। यहाँ व्हेनसांग नें कुरुक्षेत्र में पड़ी हड्डियों के बारे में बताया है, पूर्व काल में मनुष्यों की आयु और आकार दोनों ही बहुत ज्यादा होते था। सतयुग में जहां मनुष्यों की लम्बाई आज के हाथ के अनुसार इक्कीस हाथ है, वही त्रेतायुग में चौदह हाथ, द्वापर युग में सात हाथ और कलियुग में साढ़े तीन हाथ यानि लगभग 6 फीट होती है।

मेवाड़ के महाराज राणा सांगा एक समय अपना वेश बदल कर अजमेर के एक व्यापारी करमचंद परमार के यहाँ नौकरी करते थे। एक बार जब करमचंद किसी कार्य के लिये जंगल गए थे तब राणा सांगा भी उनके साथ गये और एक जगह सभी लोग रुक कर विश्राम करने लगे। राणा सांगा ने भी कुछ दूरी पर अपने घोड़े को बाँधा और विश्राम करने लगे, कुछ देर बाद वहाँ के लोगों ने करमचंद को बताया की राणा सांगा सो रहे हैं और उनके सर के ऊपर एक विशालकाय सर्प इनकी रक्षा कर रहा है। तब करमचंद को राणा सांगा ने अपना परिचय दिया, लेकिन विशाल सर्प उनकी रक्षा क्यों कर रहा था ये आज भी एक रहस्य ही है।

मेवाड़ के महाराज राणा सांगा एक समय अपना वेश बदल कर अजमेर के एक व्यापारी करमचंद परमार के यहाँ नौकरी करते थे। एक बार जब करमचंद किसी कार्य के लिये जंगल गए थे तब राणा सांगा भी उनके साथ गये और एक जगह सभी लोग रुक कर विश्राम करने लगे। राणा सांगा ने भी कुछ दूरी पर अपने घोड़े को बाँधा और विश्राम करने लगे, कुछ देर बाद वहाँ के लोगों ने करमचंद को बताया की राणा सांगा सो रहे हैं और उनके सर के ऊपर एक विशालकाय सर्प इनकी रक्षा कर रहा है। तब करमचंद को राणा सांगा ने अपना परिचय दिया, लेकिन विशाल सर्प उनकी रक्षा क्यों कर रहा था ये आज भी एक रहस्य ही है।

बिहार के राजगीर में सोन नामक एक प्राचीन गुफा है, इस गुफा बारे में मान्यता है की यहाँ अकूत स्वर्ण का भण्डार है। माना जाता है कि यह खजाना मगध के सम्राट बिम्बिसार का है, हांलाकि इतिहासकार इसे बिम्बिसार के पूर्ववर्ती सम्राट जरासंध का भी खजाना बताते हैं। इस गुफा के अन्दर एक विशालकाय कक्ष है, इस कक्ष के अन्दर जाने पर दीवार की दूसरी तरफ एक रास्ता है, जिसे पत्थरों से बंद किया गया है। यहीं स्थित एक दीवार पर प्राचीन शंख लिपि में कुछ लिखा गया है, लेकिन इसे आज तक कोई नहीं पढ़ पाया। अंग्रेजों नें इस गुफा को तोड़ने के बहुत प्रयास किये लेकिन कभी सफल नहीं हो पाये।

बिहार के राजगीर में सोन नामक एक प्राचीन गुफा है, इस गुफा बारे में मान्यता है की यहाँ अकूत स्वर्ण का भण्डार है। माना जाता है कि यह खजाना मगध के सम्राट बिम्बिसार का है, हांलाकि इतिहासकार इसे बिम्बिसार के पूर्ववर्ती सम्राट जरासंध का भी खजाना बताते हैं। इस गुफा के अन्दर एक विशालकाय कक्ष है, इस कक्ष के अन्दर जाने पर दीवार की दूसरी तरफ एक रास्ता है, जिसे पत्थरों से बंद किया गया है। यहीं स्थित एक दीवार पर प्राचीन शंख लिपि में कुछ लिखा गया है, लेकिन इसे आज तक कोई नहीं पढ़ पाया। अंग्रेजों नें इस गुफा को तोड़ने के बहुत प्रयास किये लेकिन कभी सफल नहीं हो पाये।

एक बार एक अंग्रेज़ गायिका घर में गाने का अभ्यास कर रही थीं कि अचानक उन्हें बार-बार एक साँप की आकृति दिखाई देने लगी। शुरुआत में उन्हें लगा कि शायद ये उनकी कल्पना हो, लेकिन हक़ीक़त का पता लगाने के लिए उन्होंने कमरे में रेत बिछा दी और दोबारा वही राग गाना शुरू कर दिया। जब गाना पूरा करने के बाद उन्होंने रेत की तरफ़ देखा, तो वहाँ सचमुच साँप का आकार उभरा हुआ था। दरअसल, वे अनजाने में सर्प राग गा रही थीं। पुराने ज़माने में भी ऐसे तमाम किस्से मिलते हैं। कहते हैं कि जब सिद्ध गायक मल्हार राग गाते थे, तो बारिश शुरू हो जाती थी। दीपक राग से बुझे हुए दीये फिर से जल उठते थे, और मृगरंजनी राग सुनकर जंगल के हिरण आकर्षित होकर पास चले आते थे।

एक बार एक अंग्रेज़ गायिका घर में गाने का अभ्यास कर रही थीं कि अचानक उन्हें बार-बार एक साँप की आकृति दिखाई देने लगी। शुरुआत में उन्हें लगा कि शायद ये उनकी कल्पना हो, लेकिन हक़ीक़त का पता लगाने के लिए उन्होंने कमरे में रेत बिछा दी और दोबारा वही राग गाना शुरू कर दिया। जब गाना पूरा करने के बाद उन्होंने रेत की तरफ़ देखा, तो वहाँ सचमुच साँप का आकार उभरा हुआ था। दरअसल, वे अनजाने में सर्प राग गा रही थीं। पुराने ज़माने में भी ऐसे तमाम किस्से मिलते हैं। कहते हैं कि जब सिद्ध गायक मल्हार राग गाते थे, तो बारिश शुरू हो जाती थी। दीपक राग से बुझे हुए दीये फिर से जल उठते थे, और मृगरंजनी राग सुनकर जंगल के हिरण आकर्षित होकर पास चले आते थे।

आज से लगभग दो-ढाई हजार वर्ष पहले तक प्राचीन भारत में विमानों का प्रयोग प्रचलित था, कई प्राचीन ग्रंथों में विमानों के होने का उल्लेख मिलता है। चाणक्य ने जहां अपनी कृति अर्थशास्त्र में इनका उल्लेख किया है, वहीँ महाराजा भोज के समरांगणसूत्रधार नामक ग्रन्थ में भी पारे से उड़ने वाले विमानों का उल्लेख मिलता है। महर्षि भारद्वाज कृत वैमानिक शास्त्र, यंत्रसर्वस्वं और मध्यकालीन ग्रन्थ युक्तिकल्पतरु में भी विमानों का उल्लेख मिलता है। महर्षि दयानंद सरस्वती ने भी अपने ग्रन्थ ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में एक पूरा अध्याय इन्ही विमानों पर लिखा है।

आज से लगभग दो-ढाई हजार वर्ष पहले तक प्राचीन भारत में विमानों का प्रयोग प्रचलित था, कई प्राचीन ग्रंथों में विमानों के होने का उल्लेख मिलता है। चाणक्य ने जहां अपनी कृति अर्थशास्त्र में इनका उल्लेख किया है, वहीँ महाराजा भोज के समरांगणसूत्रधार नामक ग्रन्थ में भी पारे से उड़ने वाले विमानों का उल्लेख मिलता है। महर्षि भारद्वाज कृत वैमानिक शास्त्र, यंत्रसर्वस्वं और मध्यकालीन ग्रन्थ युक्तिकल्पतरु में भी विमानों का उल्लेख मिलता है। महर्षि दयानंद सरस्वती ने भी अपने ग्रन्थ ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में एक पूरा अध्याय इन्ही विमानों पर लिखा है।

नई दिल्ली के महरौली नामक स्थान पर जिसे प्राचीन काल में मिहिरावली कहा जाता था, एक अति प्राचीन लौह स्तम्भ है जिसे ध्वज-स्तम्भ, विजय स्तम्भ और गरुड़-स्तम्भ के नाम से भी जाना जाता है। लगभग साढ़े चार फीट व्यास वाले इस लौह स्तम्भ को महाराजा विक्रमादित्य ने करीब 2000 वर्ष पहले यहाँ स्थापित कराया था। 98 प्रतिशत शुद्ध इस्पात से बने हुए इस लौह स्तम्भ पर आज तक जंग नहीं लगी है, यह स्तम्भ प्राचीन भारत के उच्च धातु विज्ञान का जीवित प्रमाण है।

नई दिल्ली के महरौली नामक स्थान पर जिसे प्राचीन काल में मिहिरावली कहा जाता था, एक अति प्राचीन लौह स्तम्भ है जिसे ध्वज-स्तम्भ, विजय स्तम्भ और गरुड़-स्तम्भ के नाम से भी जाना जाता है। लगभग साढ़े चार फीट व्यास वाले इस लौह स्तम्भ को महाराजा विक्रमादित्य ने करीब 2000 वर्ष पहले यहाँ स्थापित कराया था। 98 प्रतिशत शुद्ध इस्पात से बने हुए इस लौह स्तम्भ पर आज तक जंग नहीं लगी है, यह स्तम्भ प्राचीन भारत के उच्च धातु विज्ञान का जीवित प्रमाण है।

पाकिस्तान में अमेरिका से ज्यादा हिन्दू रहते हैं, जहां अमेरिका में 0.7% हिन्दू हैं वहीँ पाकिस्तान में 1.8% हिन्दू रहते हैं।

पाकिस्तान में अमेरिका से ज्यादा हिन्दू रहते हैं, जहां अमेरिका में 0.7% हिन्दू हैं वहीँ पाकिस्तान में 1.8% हिन्दू रहते हैं।

दुनिया का सबसे धनी धार्मिक स्थल भारत में स्थित पद्मनाभ स्वामी मंदिर है, इसकी कीमत 22.3 अमेरिकी डॉलर यानि 22,300,000,000 रुपया है।

दुनिया का सबसे धनी धार्मिक स्थल भारत में स्थित पद्मनाभ स्वामी मंदिर है, इसकी कीमत 22.3 अमेरिकी डॉलर यानि 22,300,000,000 रुपया है।

Apple के संस्थापक स्टीव जॉब्स ने फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग को उत्तराखंड में स्थित श्री नीम करौली बाबा के आश्रम में जाने की सलाह दी थी।

Apple के संस्थापक स्टीव जॉब्स ने फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग को उत्तराखंड में स्थित श्री नीम करौली बाबा के आश्रम में जाने की सलाह दी थी।

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